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होली पर यहां दी जाती है जमकर गालियां, सुनने वाले भी लेते है मजे
हमारे देश में होली का त्योहार अलग- अलग प्रांतों में अलग- अलग ढंग से मनाया जाता है। होली एक ऐसा त्योहार है, जो रंगों की मस्ती के साथ-साथ गालियों और गुदगुदाते गीतों के लिए भी खूब जाना जाता है। वाराणसी, मिथिलांचल, कुमाऊं, राजस्थान, हरियाणा में होली पर गाली की अनोखी परंपरा है। इसीलिए इस त्योहार को सबसे अनूठा कहते हैं। साल भर लोगों को इसका इंतजार इसका रहता है। लोग गालियों और गीतों के जरिए अपनी भड़ास निकालते हैं। जैसा प्रदेश, वैसे गीत और वैसी ही वहां की गालियां।
बनारस में गाली देने में महिला-पुरुष का कोई भेद नहीं
काशी की परंपराएं इसलिए अनूठी हैं क्योंकि यहां होली पर गालियों का भी अपना एक अलग संस्कार देखने को मिलता है। दूसरे शहरों में गाली देने पर मार हो जाए, लेकिन यहां होली पर गालियां मनभावन लगती हैं। कवि सम्मेलन बनारस में होली के दिन गाली देने में महिला-पुरुष का कोई भेद नहीं किया जाता। और ना ही दोनों एक दूसरे से पीछे रहते हैं। यहां की ये परंपरा सालों पुरानी है। हर साल होली पर रंगों के साथ-साथ गालियों का चलन है। यहां के गाली कवि सम्मेलन की ख्याति देश ही नहीं दुनिया भर में है। आमतौर पर हुड़दंगी होली खेलने के बाद कवियों की महफिल जमती है। और गालियों के साथ शुरु हो जाते हैं हंसगुल्ले। यहां जिसको जितनी गालियां मिलती हैं समझिए उसे उतना ही सम्मान है। कहते हैं ये आयोजन अस्सी के दशक से शुरु हुआ था। गाली के बिना यहां अभिवादन नहीं होता।
बनारस के बाद बात बिहार के मिथिलांचल की। चूंकि मैथिली ऐसी भाषा है, जो अपनी मिठास और मृदुलता के लिए विख्यात है लिहाजा यहां जब होली पर गालियां दी जाती हैं तो पहली नजर में पता ही नहीं चलता कि किसी ने किसी को गाली भी दी है। मेहमानों का यहां गालियों से स्वागत होता है। होली के मौके पर आमतौर पर मिथिलांचल में ससुराल आये दामाद को खूब गालियां देने का रिवाज है। होली पर ससुराल आए दामाद को सालियां और उनकी सहेलियां रंगों से भिगोती हैं और बहुत ही मधुर लहजे में गालियां देती हैं। दामाद भी इस अवसर पर खुद को धन्य समझता है। क्योंकि जीवन में जितनी गालियां सुनने को नहीं मिलती, उतनी इस एक दिन में सुनने को मिल जाती हैं।
कुमाऊं में होली के दिन हंसी ठिठोली के साथ एक दूसरे को चिढ़ाने की भी लंबी पंरपरा है। और इसकी बकायदा पहले से तैयारी की जाती है। दरअसल होली पर दी जाने वाली ये गालियां सालों पुराने रिवाज का हिस्सा है, लिहाजा इसका अपना एक सलीका है, इसमें अभद्रता और अश्लीलता के लिए कोई जगह नहीं होती है। हालांकि होली में अश्लील हरकतें भी आमतौर पर देखी जाती हैं लेकिन अश्लील आचरण और भाषा होली की शान नहीं होती है। होली की मस्ती और उमंग को अश्लील गालियां कम कर देती हैं।
हरियाणा, राजस्थान की अपनी ओजपूर्ण भाषा है। लिहाजा कई बार यहां की गालियां सुनने के बाद अभद्रता का अहसास होता है लेकिन स्थानीय रंग में रंगने के बाद वह वहां का रिवाज प्रतीत होता है। होली के बाद उन गलियों का कोई औचित्य नहीं होता। कल होकर लोग भूल जाते हैं। वाराणसी की तरह हरियाणा का हास्य कवि सम्मेलन भी काफी मशहूर है। इन सम्मेलनों में राजनीतिक व्यंग्य तो होते ही हैं, साथ ही गाली की शक्ल में शब्दों के छींटे और बौछारें भी खूब देखने को मिलती है।