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हिमाचल की हवा में घुलने लगा जहर, इन चार शहरों के हालात ठीक नहीं
Last Updated on April 30, 2022 by sintu kumar
शिमला। हिमाचल (Himachal) में लगातार दहकते जंगल और बढ़ती आगजनी की घटनाओं ने प्रदेश की आवोहवा को प्रदूषित कर दिया है। प्रदेश में बेहताश गर्मी (Heat) में जहां लोगों का बाहर निकालना मुश्किल हो गया है तो वहंीं हवा भी अब साफ नहीं है। बेशक गर्मी से निजातपाने के लिए देशभर से हर रोज 70 हजार से अधिक पर्यटक (Tourist) हिमाचल की ओर रूख कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश की हवा खराब होने से यहां की फ्रेश हवा का मजा लेने वालों के लिए यह अच्छी खबर (Good News) नहीं है।
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अगर बात राजधानी शिमला की करें तो मार्च में पहाड़ों की रानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air Quality Index) और 50 माइक्रो से कम था, लेकिन अप्रैल में यह बढ़कर 92 माइक्रो ग्राम हो गया। बात करें धर्मशाला (Dharamshala) की तो यहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 84 माइक्रो ग्राम है। दुनियाभर के पर्यटकों में फेमस मनाली (Manali) में एयर क्वालिटी इंडेक्स 87 माइक्रो ग्राम तक पहुंच गया है।
सबसे ज्यादा चिंता की हिमाचल के इन चार शहरों में है जहंा एयर क्वालिटी इंडेक्स को लेवल सौ माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के पार पहुंच गया है। ये चारों शहर प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Area) है। सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र बद्दी (Baddi) की बात करें तो यहां की हवा अब सांस लेने के लिए ठीक नहीं है। यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 163 माइक्रो ग्राम के पार पहुंच गया है और प्रदेश का सबसे शहर है। इसके बाद बारी आती है कालाअंब (Kalaamb) की। दूषित हवा को लेकर यह शहर दूसरे नंबर पर आता है।
यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 131 के पार पहुंच गया है। बरोटीवाला (Barotivala) में एयर क्वालिटी इंडेक्स 120, पांवटा साहिब में 113 और नालागढ़ (Nalagarh) में 100 माइक्रो ग्राम पार पहुंच गया है। इसके अलावा परवाणु (Parwanu) का 46, ऊना 69, डमटाल 83 और सुंदरनगर का 46 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर आंका गया है।
अप्रैल में 490 बार जले हिमाचल के जंगल
अप्रैल में जंगलों में आग की 490 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। जंगलों (Forest) की आग ने हिमाचल की हवा में धुआं ही धुआं घुल रहा है। लंबे समय से बारिश (Rain) न होने से ड्राइ स्पेल भी लंबा हो गया है। हर जगह-जगह धूल ही धूल उड़ रही है। इससे भी हवा प्रदूषित (Air Polluted) हो रही है। आपको बता दे कि जब हवा में जहरीले कणों का ग्राफ 100 माइक्रो ग्राम से अधिक होने लगता है तो इसका सीधा असर इंसान के फेफड़ों पर पड़ने लगा है।