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दुनिया (World) में जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या बन गई है। मौसम के बदलाव से सही समय पर बारिश-बर्फबारी न होने से इसका सीधा असर अब हमारे जीवन पर भी पड़ने लगा है। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के चलते पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) का प्रभाव साफ तौर पर देखा जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते हमारे ग्लेशियर (Glacier) अब धीरे-धीरे पिघलने लगे हैं और इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह दिन भी दूर नहीं होगा जब पूरी दुनिया में जल प्रलय (Deluge) आएगी। दरअसल, हम बात कर रहे हैं अंटार्कटिका (Antarctica) में मौजूद थ्वाइट्स ग्लेशियर की। जिसे दुनिया का सबसे बड़ा और खतरनाक ग्लेशियर माना जा रहा है।
अंटार्कटिका के पश्चिमी इलाके में स्थित ये ग्लेशियर समुद्र के भीतर कई किलोमीटर की गहराई में डूबा हुआ है। इस ग्लेशियर की अंदरुनी चौड़ाई लगभग 468 किलोमीटर मानी जाती है। ये ग्लेशियर समुद्र के अंदर एक विशालकाय दैत्य की तरह फैला हुआ है। अगर इस ग्लेशियर से मजबूत से मजबूत जहाज भी टकरा जाएए तो भयंकर दुर्घटना हो सकती है।
थ्वाइट्स ग्लेशियर (Thwaites Glacier) का क्षेत्रफल 192000 वर्ग किलोमीटर है। अगर इतना विशाल ग्लेशियर जब पिघलेगा तो सारी दुनिया में तबाही मच जाएगी। सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि इस ग्लेशियर के पिघलने की शुरुआत हो भी चुकी है। नासा (NASA) के वैज्ञानिकों की मानेंए तो इस ग्लेशियर के भीतर छेद हो रहे हैं। इस ग्लेशियर में एक इतना बड़ा छेद हो चुका है, जो अमेरिका (America) के मैनहट्टन शहर का दो-तिहाई है। हालांकि, वैज्ञानिकों को बस इतनी सी जानकारी हासिल करने के लिए खून-पसीना एक करना पड़ा, क्योंकि इस ग्लेशियर के आसपास का मौसम इतना तूफानी होता है कि इसकी सैटलाइट इमेज भी साफ नहीं आ पाती है। अमेरिका और ब्रिटेन ने केवल इस ग्लेशियर की तस्वीर निकालने के लिए एक बड़ा करार किया जिसे इंटरनेशनल थ्वाइट्स ग्लेशियर कोलेबरेशन कहते हैं।
बता दें कि अगर ये ग्लेशियर पिघल जाएगाए तो दुनियाभर के समुद्रों का स्तर 2 से 5 फुट तक बढ़ जाएगा, जिसके वजह से तटीय इलाके पानी से डूब जाएंगे। ऐसे में अलग-अलग देशों की करोड़ों की आबादी या तो मारी जाएगी या फिर विस्थापन का शिकार हो जाएगी। इस बात की आशंका जताई जा रही है कि इस ग्लेशियर के पिघलने का असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा और महामंदी आ जाएगी।
थ्वाइट्स ग्लेशियर के पिघलने से जलप्रलय के अलावा और भी कई दुष्परिणाम होंगे। दुनिया के ताजे पानी में अंटार्कटिक की बर्फ की हिस्सेदारी नब्बे फीसदी है। अब एक बार में पिघलने से जलस्तरए तो बढ़ेगाए लेकिन दूसरे इलाकों में पानी की कमी हो जाएगी। वे नदियां सूख जाएंगी, जिनके पानी के स्त्रोत ग्लेशियर रहा है। इन सभी खतरों को देखते हुए वैज्ञानिक थ्वाइट्स ग्लेशियर को डूम्सडे ग्लेशियर भी कहते हैंए यानी वो ग्लेशियर जिसका पिघलना कयामत लाएगा।
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